Wednesday, May 2, 2012

मुझे भी लेते चलो

कुछ दिनों पहले की बात थी, इस भीड़ भरी लाइफ से और अपने काम से मैंने कुछ दिन अलग रहने का फैसला किया. मैं कुछ दिनों छुट्टी पर चला गया. मंजिल का पता ही नही था बस खुद पे भरोसा करके चलता चला गया, देखना चाहता था की मंजिल मुझे कहा तक ले जाती है.
                  मेरे साथ कोई भी नहीं था, बस मैं और मेरी तन्हाई. अपनी इन्हीं तन्हाइयो के साहारे मैं चलता चला गया, और अपनी मंजिल को ढूंढता रहा. काफी दूर बस से चलने के बाद मैंने कहीं रुकने का फैसला किया, कहीं किसी छोटे से शहर मे बस रुकी तो मैंने भी वही रुकने का फैसला किया. मैं बस से उतर गया और चलने लगा. थोड़ी दूर चलने के बाद मैंने किसी से यहाँ रुकने के लिए होटल के बारे मे पूछा, उसने थोडा आगे चल कर जाने के लिए बोला और ये भी बताया कि यहाँ इससे अच्छा होटल नही मिलेगा.
                 मैं वहां गया और मैंने उस होटल वाले से बात की. मैंने उसे बताया कि मैं यहाँ १०-१५ दिन के लिए आया हूँ, तब तक मुझे रहने के लिए कमरा किराये पर चाहिए. वो एक छोटे से शहर में होने और अच्छा होने के कारण उसने उसका किराया ३०० रूपए / दिन का बताया, मेरे पास और कोई बिकल्प नहीं था इसीलिए मैंने उसे ही लेना उचित समझा.
                 उसने मुझे पहले ही रूम के बारे मैं बता दिया था, और ये भी बताया था कि आपका रूम बहुत हवादार हैं. उसमे आपको कोई परेशानी नहीं होगी. मैंने उससे ज्यादा बात न करते हुए रूम कि चाभी ली और रूम में चला गया. जैसे ही मैंने रूम को खोला और उसके अंदर जाने के लिए कदम बढाया, उसमें जो मुझे अनुभव हुआ उसके बारे में आपको क्या बताऊँ इतना अच्छा रूम था कि मन कर रहा था कि बस वही रुक जाऊ, रूम के ठीक सामने खिड़की थी और वहां से ठंडी हवा आ रही थी. ऐसा लग रहा था कि मानो जन्नत में आ गए हो
               रूम के अन्दर जाते ही इतनी ठंडी हवा के सामने मेरी सारी थकान उतर गयी. ऐसा लग ही नहीं रहा था की मैं सफ़र करके आ रहा हूँ. सच में उसने जैसा कहा था रूम बिलकुल वैसा ही निकला. सफ़र के दौरान सहीं से न सो पाने के कारण मुझे नींद आ रही थी और वैसे भी इतनी अच्छी हवा के सामने कौन नहीं सोना चाहेंगा, मैंने भी ऐसा ही किया, पहले थोडा सा फ्रेश हुआ और फिर सो गया. यकीन मानिये इतनी अच्छी हवा चल रही थीं की पता ही नहीं चला की कब नींद आ गयी. मैंने सोने से पहले जब टाइम देखा था तब दोपहर के एक बज रहा था और जब आँख खुली तब सुबह के पांच बज रहे थे. वो पूरा दिन में बिना कुछ खाए ऐसे ही सोता रहा. सुबह जब उठा तब मुझे बहुत भूख लग रही थी लेकिन इतनी ठंडी हवा के सामनें मेरा उठने का मन नहीं कर रहा था. थोड़ी देर बाद में मैं उठा और फ्रेश होकर सुबह का आनंद लेने चला गया.
              मैं बस सुबह का आनंद ले ही रहा था कि कुछ दूर चलने के बाद मुझे अचानक कोई महक सी अपने पास आती हुई लगी. मैंने उस महक की तरफ जाना उचित समझा, क्योंकि मुझे भूख भी बहुत लग रही थी. मुझे लग रहा था की वह कोई ज़रूर स्वादिस्ट चीज़ होगी. मैं जैसे ही आगे बड़ा वो महक और बढ गयी. थोडा और आगे चलने के बाद मुझे एक शॉप दिखाई दी, जो मीठे की शॉप थी. मैं वह पंहुचा तो मैंने देखा कि वहां गरमा गर्म जलेबी बन रही हैं. मैंने देर न करते हुए जलेबी को खाना ही उचित समझा, क्योकि मुझे भूख बहुत लग रही थी. मैंने उससे २००ग्राम  जलेबी ली. जैसे ही मैंने जलेबी खाई, वो बहुत ही स्वादिस्ट थी. उससे खा के ऐसा लगा कि जैसे मुह मैं रस भर गया हैं. मैंने उस दुकानदार से कहा कि तुम्हारी जलेबी बहुत ही अच्छी हैं उसे खा के तो मज़ा आ गया.
              वो बोला कि हमारी जलेबी में आपको स्वाद मिलेगा और आपकी तबियत भी खुश हो गयी होगी. मैंने उससे कहा कि भाई बहुत मज़ा आ गया तुम्हारी जलेबी खाकर, ये इतनी अच्छी हैं कि क्या बताऊँ इसके बारे में. उसके बाद मैंने उससे थोड़ी बाते की और इस शहर के बारे में कुछ जानना चाहा. उसने बताया की यहाँ बहुत शांति रही हैं यहाँ आपको बड़े शहर की तरह शोर शराबा नहीं मिलेगा, यहाँ के लोग अपनों की नहीं बल्कि दुसरो की भी मदद करते हैं, आप यहाँ कुछ दिनों के लिए आये ज़रूर हो लेकिन यहाँ से जाने के बाद इस शहर को जरूर याद करोगे. उसने कुछ जगह बताई जो घुमने के लिए बहुत अच्छी हैं. उसने कहा आप एक बार जायेगा ज़रूर. कुछ देर बात करने के बाद मैंने वह से चलने का सोचा. और मैं अपने रूम पर आ गया.
             जैसे ही मैं रूम पे आया वैसे ही मेरे रूम में वेटर कुछ खाने के लिए लेकर आ गया. मैंने उससे पूछा ये क्या हैं, तो उसने बताया की सर ये हमारे होटल की तरफ से हैं. हम अपने हर कस्टमर को सुबह चाय और बिस्कुट खाने के लिए देते हैं. ये हमारे होटल की तरफ से हैं. इतना कह कर वो चला गया. मैंने चाय बिस्कुट का नाश्ता भी कर लिया और नहाने के लिए चला गया. उअके बाद जब मैंने टाइम देखा तब ११ बज चुके थे. उसके बाद मैंने घुमने के लिए निकल गया था. जैसा उस जलेबी वाले ने मुझे बताया था. उस दिन मैंने तीन चार जगह गया और लोगो से भी बाते की. लोगो से उनके शहर के बारे में जाना लेकिन पता नहीं क्यों मैंने जिससे भी पूछा सबने एक ही बताया किसी ने कुछ नया नहीं बताया. उसके बाद मैंने रात का खाना खाया और उसके बाद में अपने रूम पे आ गया. पूरा दिन घुमने के बाद थकान की वजह से में जल्दी ही हो गया था.
              अगले दिन सुबह जब मैं उठा तब मैं फिर से टहलने चला गया और उसी जलेबी वाले की दुकान पर पहुँच गया, उसकी जलेबी इतनी अच्छी लगी कि रोज़ सुबह मैंने उसकी जलेबी खाने के बारे में सोचा. मैंने सोचा कि जब तक यहाँ पर हूँ  तब तक तो उसकी जलेबी खा ही सकता हूँ. मुझे देखते ही उसने मुझसे कहा कि बाबू जी कैसे हो. मैंने कहा कि बहुत अच्छा हूँ, तुम्हारी जलेबी कि महक मुझे यहाँ तक खीच के ले आई हैं. उसने बोला साहब ये मीठी चीज ही ऐसी हैं कि एक बार मन को छु जाये तो अपने आप बुला लेती हैं और में अपने मुहं से अपनी तारीफ़ क्या करूँ. जो तो आप के यहाँ आने से पता ही चल गया हैं, इतना कह कर उसने मुझे जलेबी दे दी. मैंने जलेबी खायी और उससे बाते की, उसने मुझे यहाँ के बारे में काफी कुछ बता दिया और बोला साहब आप जब तक यहाँ हो मुझे ज़रूर याद करोगे. मैंने कहा की ऐसी बात नहीं हैं में यहाँ से जाने के बाद भी तुम्हे याद रखूँगा और तुम्हारी जलेबी के बारे में सब को बताऊंगा. इतना कह कर मैं वह से चला गया. और अपने रूम पे चला गया.
             रूम पे जाने के थोड़ी देर के बाद मेरे होटल का चाय और नाश्ता भी आ गया. वहां सुबह की ठंडी हवा मानो मुझसे कुछ कह रही हो, या वहां पे किसी के होने का एहसास करा रही हो. उस ठंडी हवा के साथ मैंने सुबह की चाय का मज़ा लिया और उसके बाद फ्रेश होकर थोड़ी देर के बाद फिर से अपने सफ़र पे निकल गया. उस जलेबी वाले से जो बात की थीं उसी को याद मैं रख कर आगे चलता चला गया. जो जो उसने बताया था मैं हर उस जगह पर गया. वह के नज़ारे इतने अच्छे थें कि वह घुमने का अलग ही मज़ा आ रहा था. सुबह से कब शाम हो गयी पता ही नही चला. थोडा थका होने के कारण मैं एक पार्क मैं जाकर बैठ गया.
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4 comments:

Vinay said...

ye kon see story hai

Unknown said...

ये अभी अधूरी हैं.

Vinay said...

complete it soon

Unknown said...

hiiiiiii